दद्दा धाम में भक्ति और आस्था का महासंगम: प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब, इंद्रेश उपाध्याय महाराज के प्रवचन सुन भाव-विभोर हुए श्रद्धालू

जनमत हिन्दी। कटनी के झिंझरी स्थित श्रीकृष्ण वृद्ध आश्रम प्रांगण, दद्दा धाम में गृहस्थ संत परम पूज्य गुरुदेव अनंत विभूषित पं. देव प्रभाकर शास्त्री “दद्दा जी” की असीम कृपा से जारी प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव, असंख्य पार्थिव शिवलिंग निर्माण, महारुद्राभिषेक एवं अमृतमयी कथा में श्रद्धा और भक्ति और आस्था के सैलाब का अनुपम संगम देखने को मिल रहा है। आज पहले दिन की कथा में भारत वर्ष में प्रसिद्ध इंद्रेश उपाध्याय महाराज (श्री धाम वृंदावन) ने अपने भजनों एवं प्रवचनों का श्रद्धालुओं ने भाग लेकर अमृतमयी वाणी का श्रवण किया। इसके पूर्व प्राणप्रतिष्ठा महोत्सव में  प्रदेश के राजनेताओं सांसद वी डी शर्मा ,पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, विधायक गण रीति पाठक, प्रणय पांडे, विजेंद्र प्रताप सिंह,लखन घनघोरिया, अर्चना चिटनिस,दीपक सोनी टंडन, पूर्व विधायक नीरज दीक्षित सहित बड़ी संख्या में ने मंदिर में आशीर्वाद लेकर कथा का श्रवण किया । इंद्रेश महाराज ने ब्रजभाषा में अपने प्रवचन प्रस्तुत करते हुए ऐसा भक्तिमय वातावरण बनाया कि उपस्थित जनसमूह भाव-विभोर हो उठा। हर कोई उनके दर्शनों एवं प्रवचनों को लेकर लालायित दिखा। महाराज ने अपने ओजस्वी प्रवचन में उन्होंने कहा कि मनुष्य तभी सच्चे अर्थो में जीवन का आनंद अनुभव कर सकता है, जब वह अहंकार का त्याग कर ईश्वर की शरण में आए। भक्ति कोई प्रदर्शन नहीं, यह तो अंतर का भाव है। जब मन निर्मल होता है, तभी भगवान कृपा करते हैं। उन्होंने कहा कि संसार का सुख क्षणिक है, परंतु भक्ति और सेवा का आनंद शाश्वत है। प्रेम ही परमात्मा का साक्षात रूप है और जो प्रेम में लीन है, वही सच्चा भक्त है। मनुष्य जब तक प्रेम और भक्ति के मार्ग पर नहीं चलता, तब तक उसका जीवन अधूरा रहता है।इंद्रेश उपाध्याय जी ने गुरु महिमा को लेकर बताया है कि माता-पिता ही प्रथम गुरु होते हैं और उनकी प्रसन्नता सबसे बड़ी तपस्या है। उन्होंने यह भी समझाया कि गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है और गुरु के शब्द और भाव दोनों ही शिष्य के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। आप सभी लाखों शिष्यों को दद्दाजी का आशीर्वाद के साथ उनके दिखाए सदमार्ग पार्थिव शिवलिंग निर्माण से इस लोक और परलोक में भी अखण्ड शिव भक्ति मिलती है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने गुरु की शरण में जाने के महत्व पर भी जोर दिया है, जैसा कि उन्होंने एक प्रवचन में कहा है कि गुरु के बिना जन्म-दुख से पार पाना मुश्किल है। कटनी की पावनधरा को विंध्य बघेल खंड, महाकौशल, बुंदेलखंड, के बीच का विशेष क्षेत्र कह कर संबोधित किया।

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