जनमत हिन्दी। रेत खदानों पर सरकार और विभाग नहीं, बल्कि संगठित रेत सिंडिकेट का कब्ज़ा है। नीलामी महज़ दिखावा है, असल नियंत्रण सिंडिकेट के पास है, जो खनन से लेकर कीमत और परिवहन तक पूरा खेल संचालित करता है। अफसर जानते हुए भी खामोश हैं, जिससे सवाल खड़ा होता है कि टेंडर प्रक्रिया पारदर्शिता लाएगी या फिर सब कुछ पहले जैसा चलता रहेगा।
खनन, परिवहन, सप्लाई, कीमत और नेटवर्क सब पर सिंडिकेट का पूरा नियंत्रण है। ठेका किसी कंपनी के नाम पर हो, असल अधिकार सिंडिकेट के पास होता है। यही कारण है कि कंपनी को सुरक्षा नहीं मिलती, बल्कि सिंडिकेट को संरक्षण दिया जाता है। यही सिंडिकेट अघोषित फ्लाइंग स्क्वॉड और अघोषित रेत नाके चलाकर पूरे सिस्टम पर कब्ज़ा जमाए हुए है।
सब कुछ जानते हुए भी अधिकारी खामोश हैं।
निरीक्षण से लेकर एनजीटी के आदेश, इनवायरमेंट क्लियरेंस और खदानों की मॉनिटरिंग तक, सब कुछ महज़ कागजी खानापूर्ति बनकर रह गया है। सवाल यह है कि अफसर कार्रवाई क्यों नहीं करते?, क्या वे भी सिंडिकेट की डोर से बंधे हुए हैं,
बरसात शुरू होने से पहले 49 खदानों को सरेंडर कर दिया गया। वजह साफ थी भोपाल स्तर पर सेटेलाइट मॉनिटरिंग शुरू हो चुकी थी और हाईवे पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित कैमरे लग गए थे, जो ट्रक का नंबर, ईटीपी, खनिज की पहचान और भार तक रिकॉर्ड करने लगे थे। सिंडिकेट की मनमानी से अफसरों की गर्दन फंस रही थी। कोई बड़ी कार्रवाई हो उससे पहले खदानें सरेंडर कर दी गईं। बरसात का मौसम इसलिए चुना गया ताकि पानी के बहाव से नई रेत आ जाए और अवैध खनन के सबूत मिट जाएं।
अब उन्हीं खदानों का दोबारा टेंडर जारी कर दिया गया है। लगभग 20 लाख घन मीटर रेत का आकलन और 50 करोड़ रुपए का अफसेट प्राइज तय किया गया है। लेकिन क्या इस टेंडर से कुछ बदलेगा। हकीकत यह है कि नई कंपनी जरूर आएगी, पर कामकाज वही होगा जो सिंडिकेट चाहता है।
कटनी में रेत कारोबार का सच सबको पता है। सवाल यह है कि जब सिंडिकेट सब पर नियंत्रण रखता है, अफसर चुप रहते हैं और नियम केवल कागजों तक सीमित हैं तो टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता का दावा आखिर कितना सच्चा है? क्या सरकार हिम्मत दिखाकर सिंडिकेट पर चोट करेगी, या फिर सबकुछ पहले की तरह चलता रहेगा।
कटनी जिले की 49 खदानें फिर टेंडर में हैं, लेकिन असलियत यही हैखदान कोई भी ले, राज सिंडिकेट का ही रहेगा।











Leave a Reply